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4 नहीं बल्कि 5 सिर हुआ करते थे भगवान ब्रम्हा के, कहां गया उनका पांचवा सिर, पढ़ें पौराणिक कथा

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हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने पूरी सृष्टि की रचना की थी. यह कार्य उन्हें भगवान शिव द्वारा सौंपा गया था. ब्रह्मा जी के चार सिरों को चार वेदों के प्रतीक के रूप में माना जाता है. पहले के समय में, उनके पास पांच सिर होते थे, और इन पांच सिरों से वह सभी दिशाओं में देख सकते थे. आइए जानते हैं कि उनका पांचवां सिर कहां चला गया और इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

देवी सतरूपा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि के विकास के लिए एक बहुत सुंदर स्त्री की रचना की, जिसका नाम सतरूपा था. सतरूपा, ब्रह्मा जी की पुत्री होने के बावजूद इतनी सुंदर थीं कि ब्रह्मा जी उन पर मोहित हो गए. जब ब्रह्मा जी ने उन्हें देखा और उन्हें अपने पास लाने के लिए आगे बढ़े, तो देवी सतरूपा उनसे बचने के लिए हर दिशा में भागने लगीं.

ब्रह्मा जी ने अपनी तीन नई सिरों की उत्पत्ति की ताकि वह हर दिशा से सतरूपा को देख सकें. फिर भी सतरूपा ने ऊपर की दिशा में दौड़ने की कोशिश की, लेकिन ब्रह्मा जी ने अपना एक और सिर ऊपर की ओर उत्पन्न कर लिया.

भगवान शिव का क्रोध और पांचवां सिर
पौराणिक कथा के अनुसार यह दृश्य भगवान शिव के लिए असहनीय था, क्योंकि सतरूपा ब्रह्मा जी की पुत्री थीं. शिव जी ने देखा कि ब्रह्मा जी की यह कुदृष्टि उन्हें ठीक नहीं लग रही थी. इस पर क्रोधित होकर, शिव ने अपने गण भैरव को भेजा और भैरव ने ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया. इस घटना के बाद ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने अपनी कुदृष्टि पर पछतावा जताया.