Home छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त मोर्चा ने फूंका हड़ताल का बिगुल

छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त मोर्चा ने फूंका हड़ताल का बिगुल

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राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन, छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी महासंघ, मंत्रालय कर्मचारी संघ, संचालनालय कर्मचारी संघ एवं समस्त कर्मचारी एवं शिक्षक संगठन-एसोसिएशन ने कर्मचारी हित में छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त मोर्चा का गठन कर हड़ताल का बिगुल फूंक दिया है। मंत्रालय (महानदी भवन) एवं संचालनालय (इंद्रावती भवन) में आयोजित हुए मैराथन बैठक में रायशुमारी के बाद सभी संगठन प्रमुखों ने हड़ताल पर जाने का निर्णय बहुमत से लिया है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन के प्रांताध्यक्ष राजेश चटर्जी, प्रांतीय प्रमुख महामंत्री सतीश ब्यौहरे, जिला महामंत्री पीआर झाड़े, बृजभान सिन्हा, जितेंद्र बघेल, वीरेंद्र रंगारी, सीएल चंद्रवंशी, राजेन्द्र देवांगन, रंजीत कुंजाम, सोहन निषाद, उत्तम डड़सेना, देवचंद बंजारे, अब्दुल कलीम खान, खोम लाल वर्मा, जनक तिवारी, हेमंत पांडे, लीलाधर सेन, पुष्पेन्द्र साहू, संजीव मिश्रा, ईश्वर दास मेश्राम, शिवप्रसाद जोशी, स्वाति वर्मा, नवीन कुमार पांडे, रानी ऐश्वर्या सिंह, एमबी जलानी, डीएस कंवर एवं केएल जोश ने बताया कि सातवे वेतन पर गृहभाड़ा भत्ता (एचआरए), केंद्र के समान देय तिथि से महंगाई भत्ता (डीए), पिंगुआ कमेटी का रिपोर्ट सार्वजनिक करने, जन घोषणा पत्र अनुसार चार स्तरीय वेतनमान सहित अनियमित-दैनिक वेतन भोगी-अन्य कर्मचारियों का नियमितीकरण, राज्य में लागू किये गए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) में पेंशन पात्रता-निर्धारण हेतु शिक्षक (एल बी)-अन्य संवर्गों की अहर्तादायी सेवा की गणना प्रथम नियुक्ति तिथी किये जाने जैसे मुद्दों पर राज्य शासन द्वारा अब तक समाधानकारक निर्णय नहीं लिये जाने के विरुद्ध 7 जुलाई को प्रदेश के सरकारी दफ्तर बंद करने का निर्णय संयुक्त मोर्चा ने लिया है। उन्होंने संयुक्त मोर्चा के निर्णय के संबंध में आगे जानकारी दिया कि यदि सरकार ने अपना टालमटोल-दमनकारी नीति जारी रखा तो अगस्त क्रांति के स्वरूप राज्य के कर्मचारी-अधिकारी 1 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जायेंगे।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर पिंगुआ कमेटी का गठन 17 सितंबर 2021 को प्रदेश के कर्मचारियों-अधिकारियों के लंबित 14 सूत्रीय मांगों जैसे वेतन विसंगति, प्रदेश के कर्मचारियों एवं पेंशनरों को देय तिथी से महंगाई भत्ता, सभी विभागों में लंबित संवर्गीय पदोन्नति, समयमान एवं तृतीय समयमान का लाभ से संबंधित विषयों के लिए हुआ था, लेकिन कमेटी ने कर्मचारी एवं उसके परिवार के हित में छत्तीसगढ़ शासन को रिपोर्ट सौंपना भी मुनासिब नहीं समझा। उल्टे छत्तीसगढ़ शासन के टालमटोल नीति के तहत 25 मई 2022 को वेतन विसंगति का परीक्षण कर वेतनमान में संशोधन करने सामान्य प्रशासन विभाग (नियम शाखा) की अध्यक्षता में एक और समिति का गठन कर दिया। छत्तीसगढ़ शासन ने कर्मचारियों-अधिकारियों के प्रथम दृष्टया वास्तविक सेवा लाभ को देने के मुद्दे को भी कमेटी अथवा समिति के हवाले किया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। कर्मचारियों को सिर्फ आश्वासन मिलता रहा है अथवा दमनकारी कार्यवाही का सामना करना पड़ा है।
उन्होंने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में सातवां वेतनमान (पुनरीक्षित-2017) भले ही 1.1.2016 से लागू हो गया हो, लेकिन गृहभाड़ा भत्ता (एचआरए) आज पर्यन्त छटवां वेतनमान (पुनरीक्षित-2009) के वेतन में पुराने 10 प्रतिशत एवं 7 प्रतिशत के दर पर छत्तीसगढ़ राज्य के कर्मचारी-अधिकारी को दिया जा रहा है, जबकि छत्तीसगढ़ राज्य में पदस्थ केंद्रीय कर्मचारियों को सातवें वेतनमान में 1.7.2017 से 16 प्रतिशत एवं 8 प्रतिशत तथा 1.7.2021 से 18 प्रतिशत एवं 9 प्रतिशत के दर पर गृहभाड़ा भत्ता (एचआरए) मिल रहा है। एक ही राज्य में कार्यरत केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों को एचआरए स्वीकृति के मामले में दोहरा मापदंड है। इसी दोहरा मापदंड के करण 1.1.2016 से 30.4.2023 तक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को न्यूनतम 83864 रूपये, तृतीय श्रेणी को 104808 रूपये, द्वितीय श्रेणी अधिकारी को 263912 रूपये एवं प्रथम श्रेणी को 361768 रूपये का आर्थिक नुकसान सातवें वेतनमान में 10 प्रतिशत एवं 7 प्रतिशत के गणना पर हुआ है। उन्होंने बताया कि सातवें एवं छटवें वेतनमान में 18 प्रतिशत एवं 10 प्रतिशत तथा 9 प्रतिशत एवं 7 प्रतिशत के अंतर के गणना में चतुर्थ वर्ग को न्यूनतम 2201 रूपये तथा 979 रूपये, तृतीय वर्ग को 2751 रूपये एवं 1224 रूपये द्वितीय श्रेणी को 6927 रूपये एवं 3082 रूपये प्रथम श्रेणी को 9495 रूपये एवं 4224 रूपयों का नुकसान प्रतिमाह हो रहा है। इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ शासन मौन है।
उन्होंने आगे बताया कि महँगाई भत्ता (डीए) स्वीकृति के मामले में भी कर्मचारियों का जबरदस्त आर्थिक शोषण किया गया है। 1 जुलाई 2019 का किश्त 17 प्रतिशत को 1 जुलाई 2021 से दिया गया है। कोरोना काल के कारण केन्द्र में 1.1.20 से 1.1.21 के देय कुल 11 प्रतिशत डीए किश्त को 1.7.21 से प्रभावशील हुआ था, जिसके फलस्वरूप डीए 17 प्रतिशत से बढ़कर 28 प्रतिशत 1.7.21 से हुआ था। केंद्र शासन ने 1.1.22 से 34 प्रतिशत 1.7.22 से 38 प्रतिशत तथा 1.1.23 से 42 प्रतिशत महंगाई भत्ता अपने कर्मचारियों को दिया है, लेकिन राज्य शासन ने 1.7.21 से 17 प्रतिशत 1.5.22 से 22 प्रतिशत 1.8.22 से 28 प्रतिशत एवं 1.10.22 से 33 प्रतिशत महंगाई भत्ता दे रही है, जो कि केंद्र के समान देय तिथि से नहीं है। जिसके कारण कर्मचारियों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि आज के स्थिति में महंगाई भत्ता (डीए) स्वीकृति के मामले में देय तिथि से राज्य के कर्मचारी केंद्र के कर्मचारियों से 9 प्रतिशत पीछे चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि 1 जुलाई 2019 से 30 अप्रैल 2023 तक राज्य में देय तिथि से महँगाई भत्ता स्वीकृत नहीं होने से चतुर्थ वर्ग को न्यूनतम 41496 रूपये, तृतीय वर्ग को 51870 रूपये, द्वितीय श्रेणी को 130606 रूपये तथा प्रथम श्रेणी को 179018 रूपये का आर्थिक नुकसान हुआ है, जितना अधिक वेतन उतना अधिक नुकसान हुआ है।
उन्होंने बताया कि राज्य शासन ने नवीन पेंशन योजना (एनपीएस) के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को 1 अप्रैल 2022 से लागू किया है। राज्य शासन ने अपने आदेश 30.6.2018 के द्वारा शिक्षक (एलबी) संवर्ग को 1 जुलाई 2018 से संविलियन करते हुए समस्त सेवालाभ की पात्रता संविलियन तिथि से दिया है, लेकिन अर्धवार्षिकी आयु 62 वर्ष पूर्ण कर सेवानिवृत्त होने के स्थिति में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के अंतर्गत पेंशन पात्रता हेतु 10 वर्ष न्यूनतम अहर्तादायी सेवा पूर्ण नहीं होने के कारण, अधिकांश, पेंशन लाभ से वंचित हो जायेंगे। उन्होंने जानकारी दिया कि संयुक्त मोर्चा ने पेंशन पात्रता हेतु अहर्तादायी सेवा अवधि की गणना प्रथम नियुक्ति तिथि से करने का मांग किया है। उन्होंने बताया कि अनियमित-दैनिक वेतनभोगी-आंगनबाड़ी-कोटवार-अन्य कर्मचारियों के नियमितीकरण को संयुक्त मोर्चा ने हड़ताल के मांग में शामिल किया है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी-अधिकारी केन्द्र राज्य के विकास रथ के ध्वजवाहक हैं। कर्मचारियों ने कर्तव्य पथ पर बलिदान तक दिया है। अनुकंपा नियुक्ति के मामले में किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहना चाहिये। कर्मचारियों एवं उसके परिवार का उपेक्षा करना श्रम का अपमान है।