Home मध्यप्रदेश ताप विद्युत गृहों में होगी पराली की खपत

ताप विद्युत गृहों में होगी पराली की खपत

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भोपाल । अभी तक मप्र में जो पराली प्रदूषण फैला रही थी, उससे अब बिजली का उत्पादन होगा। दरअसल, प्रदेश सरकार ताप विद्युत गृहों में कोयले के साथ पराली का उपयोग करने की योजना बना रही है। अगर यह प्रयोग सफल होता है तो कोयला खरीदी में होने वाले खर्च से 1250 करोड़ प्रति वर्ष की बचत राज्य सरकार को होगी।गौरतलब है कि देश में सर्वाधिक वन आवरण होने के बाद भी प्रदेश में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। हवा में प्रदूषण की बढ़ती मात्रा का कारण सडक़ की धूल, वाहन और उद्योगों के साथ-साथ पराली (नरवाई) जलाने है। स्थिति यह हो गई है कि पराली जलाने में मप्र ने पंजाब और हरियाणा को भी पीछे छोड़ दिया है। पर्यावरण विभाग के सचिव नवनीत मोहन कोठारी का कहना है कि प्रदूषण का एक कारण पराली भी है। किसान इसे न जलाएं, इसके लिए उन्हें जागरुक करने का काम कृषि विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन करता है। शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण का बड़ा कारण सडक़ की मिट्टी है। धूल से प्रदूषण 60 प्रतिशत तक होता है।

अब बिजली बनाने में खपाई जाएगी पराली
किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण देश के कई हिस्सों में बड़ी समस्या है। वर्ष 2024 में सुप्रीम कोर्ट को भी इसमें दखल देना पड़ा था। अब मध्य प्रदेश इस दिशा में ठोस कदम उठाने जा रहा है। पराली का उपयोग बिजली बनाने में किया जाएगा। प्रदेश के ताप विद्युत गृहों में खपत होने वाले कोयले के सात प्रतिशत हिस्से के रूप में पराली का उपयोग किया जा सकेगा। इससे कोयला खरीदी में होने वाले खर्च से 1250 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की बचत राज्य सरकार को होगी। किसानों को भी पराली के बदले निर्धारित कीमत के मान से राशि दी मिलेगी। वहीं पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से लोगों को मुक्ति मिलेगी। डा. नवनीत मोहन कोठारी का कहना है कि ताप विद्युत गृहों में कोयले के वजन सात प्रतिशत तक पराली जलाई जा सकती है। प्रदेश में पराली के उपयोग से प्रति वर्ष 1250 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। इस पर अमल करने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है।

केंद्र ने पहले से बना रखी है नीति
जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने पहले ही इस संबंध में नीति बना रखी है। इसके अनुसार प्लांटों में सात प्रतिशत तक पराली का उपयोग किया जा सकता है। प्रदेश में अभी तक इस पर अमल नहीं हो रहा था। वायु प्रदूषण बढऩे के बाद मुख्य सचिव अनुराग जैन ने बैठक लेकर पर्यावरण, कृषि विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों के साथ बैठक कर इसका स्थायी हल निकालने के लिए कहा था। इस दिशा में अब संबंधित विभाग मिलकर इस नीति को इसी वर्ष से लागू करने की तैयारी कर रहे हैं। मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य सचिव एए मिश्रा ने बताया कि किसानों को अभी कोई लाभ नहीं होता है इसलिए वे खेत में ही मराली जला देते हैं। प्रदेश स्तर पर कोई एजेंसी निर्धारित की जाएगी जो ताप विद्युत गृहों में उपयोग के लिए किसानों के खेत से पराली इक_ा कार ले जाएगी। दूसरा लाभ यह होगा कि पराली को काफी नीचे से काटा जाएगा। इस तरह किसानों की बड़ी समस्या हल हो जाएगी। प्रदेश में 22 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन ताप विद्युत गृहों में होता है। प्रदेश में धान उत्पादन का रकबा लगभग 39 लाख हेक्टेयर है। अनुमान है कि प्रदेश में जितनी पराली निकलती है वह बिजली उत्पादन में उपयोग होगी।